1- इस राजयोग की पढ़ाई में जीवनशैली से जुड़े हुए कुछ अनुशासन हैं :-
i) मन, वचन और कर्म में पवित्रता का पालन करना तथा स्वयं को देह समझने के कारण उत्पन्न होने वाले विकारों; जैसे- काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार इत्यादि, का परित्याग करने का अभ्यास करना।
ii) भगवान की याद तथा आत्मिक स्थिति में पकाए गए सात्विक और शाकाहारी भोजन का सेवन। शराब, तम्बाकू, पान, नशीले पदार्थ, जो कि तन और मन में शुद्धि/अपवित्रता लाते हैं, उनका सेवन वर्जित है। ईश्वरीय संविधान के अनुसार, हम ऐसी किसी भी चीज़ का सेवन नहीं करते जो कि मन्दिरों में देवताओं को भोग के रूप में नहीं चढ़ाई जाती। कहते भी हैं– ‘जैसा अन्न वैसा मन’। शुद्ध भोजन का सेवन करने के साथ-ही-साथ हम अपनी संगति का भी विशेष ख्याल रखते हैं; क्योंकि हम जैसा संग करते हैं वैसा ही हमें रंग लगता है।
iii) सादगी भरा; किन्तु उच्च आदर्शों वाला जीवन व्यतीत करें। खान-पान, रहन-सहन, पहनावा इत्यादि सादा हो तथा व्यवहार श्रेष्ठ हो।
iv) पहनावा- आज पाश्चात्य सभ्यता से प्रभावित होकर हम भी अपने देवत्व को भूलकर उनका ही अनुसरण कर रहे हैं। अभी हम अपने मूल दैवी स्वरूप को फिर से जानकर अपनी जीवनशैली को उसी के अनुसार ढाल रहे हैं। पिंक साड़ी पहनने से हमारे अंदर एक ही परमधामी परिवार के सदस्य होने की भासना आती है। यूनिफ़ॉर्म (और रूहानी ड्रिल) के लिए हम सात्विक रंग वाले सफेद कपड़े पहनना पसन्द करते हैं।
v) गृहस्थ में रहते ब्रह्मचर्य का पालन करना अर्थात् कीचड़ में रहते हुए भी उससे उपराम रहने की निशानी कमल-पुष्प समान जीवन व्यतीत करना।
2- दिनचर्या
i) प्रातःकाल अमृतवेले (दो से चार बजे के बीच, हर एक की क्षमता व इच्छा के अनुरूप) राजयोग का अभ्यास करना, जिससे स्वयं को तथा अन्य आत्माओं को शान्ति, सुख और शक्तियों की अनुभूति हो तथा उसके पश्चात् संगठन में बैठकर ईश्वरीय ज्ञान का नियमित और नित्य श्रवण और अभ्यास करना। इस नियमित अभ्यास से कोई भी व्यक्ति दिव्य गुणों की धारणा कर सकता है और स्व-परिवर्तन से विश्व-परिवर्तन कर सकता है।
ii) ईश्वर की याद में भोजन पकाना, परोसना, खाना एवं स्वयं समस्त घरेलू कार्य करना।
iii) आ.वि.वि. के सदस्यों के बीच, जो सदस्य अपने जीवन को इस रूहानी सेवा के लिए समर्पित करना चाहते हैं, वे स्वेच्छा से आ.वि.वि. के सेवाकेन्द्रों पर रह सकते हैं और अपनी योग्यता अनुसार रूहानी सेवा में अपना योगदान प्रदान कर सकते हैं।
iv) अन्य सदस्य रोज़ाना की आध्यात्मिक क्लास के बाद अपने-2 घरों अथवा कार्यालयों में जाते हैं। इस प्रकार कोई भी व्यक्ति दिव्य-गुणों की धारणा और सेवा कर सकता है और स्व-परिवर्तन द्वारा विश्व-परिवर्तन कर सकता है।