आ.वि.वि. के सेवाकेंद्र भारत के प्रत्येक कोने में ही नहीं; बल्कि पूरे विश्व में मिनी मधुबनों, गीता-पाठशालाओं, शक्ति-भवनों और पांडव-भवनों के रूप में फैले हुए हैं। परमपिता शिव ने दादा लेखराज द्वारा सुनाई गई ज्ञान-मुरलियों में इन उक्त सेवाकेन्द्रों को आध्यात्मिक केन्द्र, गीता-पाठशाला, रूहानी हॉस्पिटल कम यूनिवर्सिटी अथवा रूहानी विश्वविद्यालय की संज्ञा दी है।
आध्यात्मिक विश्वविद्यालय एक संस्था नहीं; अपितु प्राचीन भारत की गुरुकुल व्यवस्था पर आधारित एक ईश्वरीय परिवार है। जिस प्रकार प्राचीन भारत में समाज के विभिन्न वर्गों के बच्चे गुरुकुल में किसी गुरु तथा उनकी धर्मपत्नी की पालना में अपना संपूर्ण बाल्यकाल विभिन्न प्रकार की विद्याएँ प्राप्त करने में बिता देते थे और इस अवधि में अपने गुरुजी और उनकी धर्मपत्नी को भी माता-पिता का सम्मान देते थे। गुरूजी एवं उनकी धर्मपत्नी भी अपने शिष्यों को अपनी संतान के समान ही पालना देते थे। गुरुकुल में चाहे कोई शिष्य राजकुमार हो या गरीब ब्राह्मण की संतान, दोनों को ही सादगी भरा जीवन व्यतीत करना पड़ता था। इस प्रकार आ.वि.वि. का हर सदस्य अलग-2 व्यक्तित्व होते हुए भी एक परिवार का ही सदस्य है।‘त्वमेव माता च पिता त्वमेव’- यह जो भगवान का गायन है, इसे वर्तमान समय यहाँ प्रैक्टिकल में अपनाया जाता है; क्योंकि इसी परिवार से स्वयं ईश्वर समग्र संसार के सामने शीघ्र ही ‘जगतं पितरं वन्दे पार्वती-परमेश्वरौ’ अर्थात् जगतपिता-जगतमाता, आदिदेव-आदिदेवी, एडम-ईव, आदम-हव्वा, आदिनाथ-आदिनाथिनी के नाम-रूप से प्रत्यक्ष होने वाला है।