ब्रह्मा और प्रजापिता ब्रह्मा

ब्रह्मा और प्रजापिता आत्माएँ अलग-अलग हैं

1.मुझे ब्रह्मा ज़रूर चाहिए, तो प्रजापिता ब्रह्मा भी चाहिए।... यह मेरा रथ मुकर्रर है। (मु.ता.15.11.87 पृ.3 आदि)

2.  कृष्ण को कब प्रजापिता ब्रह्मा नहीं कहा जाता। नाम गाया हुआ है ना प्रजापिता ब्रह्मा। जो होकर गए हैं, वह इस समय प्रेजेण्ट हैं। (मु.ता. 11.3.73 पृ.1 आदि)

3. 
प्रजापिता तो एक ही होगा ना। (मु.ता. 29.09.77 पृ.1 आदि)

4.
व्यक्त प्रजापिता ब्रह्मा चाहिए। सूक्ष्मवतन में तो प्रजापिता नहीं होता है। प्रजापिता ब्रह्मा यहाँ चाहिए। (मु.ता. 5.8.73 पृ.2 मध्यांत)

5.
ब्रह्मा नहीं शास्त्रों का सार सुनाता। वह कहाँ से सीखा? उनका भी कोई बाप वा गुरू होगा ना! प्रजापिता तो ज़रूर मनुष्य होगा और यहाँ ही होगा (मु.ता.20.10.78 पृ.2 अंत)

6.
शिवबाबा प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा ब्र.कु.कुमारियों को वर्सा देते हैं। ब्रह्मा द्वारा शिवबाबा (शास्त्र-प्रसिद्ध नौ कुरियों वाले) ब्राह्मण कुल की रचना रचते हैं। (मु.ता.1.3.76 पृ.3 मध्य)

7.
तुम अगर ब्राह्मण हो तो ब्रह्मा कहाँ है? तुम्हारा बाप कहाँ है? ब्रह्मा नाम तो कह नहीं सके। फिर तुम ब्राह्मण कैसे कहते हो? ब्राह्मण तो प्रजापिता ब्रह्मा की सन्तान थे। यह भी शरीर में है ना! अब तुम हो सच्चे ब्राह्मण और वो हैं झूठे ब्राह्मण। (मु.ता. 17.9.69 पृ.2 आदि)

8.
जगतपिता अर्थात् प्रजापिता। सो तो यहाँ ही चाहिए। (मु.ता. 18.11.62 पृ.2 आदि)

9.
प्रजापिता ब्रह्मा सिजरे का हेड है। (इस) समय प्रैक्टिकल में है। (मु.ता.22.12.83 पृ.1 अंत)

10.
प्रजापिता ब्रह्मा गाया जाता है ना! जिसको एडम, आदिदेव कहते हैं। (मु.ता. 29.12.84 पृ.2
अंत)

11.
प्रजापिता ब्रह्मा जिसको एडम कहा जाता। उनको ग्रेट-ग्रेट-ग्रैण्ड फादर कहा जाता है। (मु.ता. 6.2.76 पृ.1 मध्य)

12.
प्रजापिता आदिदेव कहते हैं; परंतु आदिदेव का अर्थ नहीं समझते हैं। ... आदि अर्थात् शुरूआत का। (मु.ता. 4.9.72 पृ.2 आदि)

मुकर्रर रथ कौन? टेम्पररी रथ कौन?

ब्रह्मा बाबा (टेम्पररी रथ) जाता है तो मुकर्रर रथ शंकर/राम वाली आत्मा फिर से स्टेज पर जाती है; इसलिए मुरलियों में टेम्पररी रथ और मुकर्रर रथ दो प्रकार के रथों की बात आई है
शिवजयंती भी मनाई जाती है तो ज़रूर यहाँ आते हैं ना! जयंती तो ज़रूर साकार मनुष्य मनुष्य की होगी। ज़रूर वह आत्मा किस शरीर में प्रवेश करते हैं। प्रकृति का आधार लेते हैं। नया शरीर नहीं लेते हैं। (मु.ता. 22.3.69 पृ.2 आदि) जयंती मनाई जाती है साकार की, निराकार की जयंती नहीं होती है। शिव मुकर्रर रूप से जिसमें प्रवेश करते हैं, उसके शरीर का अन्तत: नाश नहीं होता है। ब्रह्मा बाबा के शरीर का तो नाश हो गया। यह रथ (कायमगंज में) कायम ही रहता है, बाकी का ठिकाना नहीं है। यह तो मुकर्रर है ड्रामा अनुसार। इनको कहा जाता है भाग्यशाली रथ। तुम सबको तो भाग्यशाली रथ नहीं कहेंगे। भल किसमें बाबा आता है; परन्तु भाग्यशाली रथ एक कहा जाता है। (मु.ता. 26.8.69 पृ.3 मध्य) मुकर्रर रथ को ही भाग्यशाली रथ कहेंगे; क्योंकि वो एक ही भगवान का रथ है। ब्रह्मा बाबा को कायमी रथ नहीं कहेंगे; क्योंकि उनका साकार शरीर सदाकाल के लिए छूट गया। उनको भाग्यशाली रथ भी नहीं कहेंगे; क्योंकि अन्य सभी प्राणियों के समान नश्वर है, इसलिए बाबा ने बोला- बाकी का तो ठिकाना नहीं। ब्रह्मा के साकार पार्ट की समाप्ति और अन्य पार्ट का आरम्भ होना। (.वा.ता. 28.5.77 पृ.183 अंत) ब्रह्मा बोले ब्राह्मणों की वृद्धि तो यज्ञ समाप्ति तक होनी है; लेकिन साकारी सृष्टि में, साकारी रूप से मिलन मेला मनाने की विधि, वृद्धि के साथ-2 परिवर्तन तो होगी ना! लोन ली हुई वस्तु (टेम्पररी रथ) और अपनी वस्तु (मुकर्रर रथ) में अंतर तो होता ही है ......अपनी वस्तु को जैसे चाहे वैसे कार्य में लगाया जाता है। (.वा.ता. 5.4.83 पृ.118 मध्य) ऐसे नहीं कि ब्रह्मा बाबा ने शरीर छोड़ा तो अभी ब्राह्मणों की वृद्धि नहीं होगी, ज़रूर कोई और रथ के द्वारा वृद्धि होनी है जो मुकर्रर रथ होगा, लोन लिया हुआ नहीं; क्योंकि ब्रह्मा बाबा टेम्पररी लोन लिए हुए रथ थे; इसलिए शिवबाप उनके द्वारा जैसा चाहे वैसा पार्ट नहीं बजा सकते। वो तो मृदुल स्वभाव के थे; परन्तु मुकर्रर रथ तो अपना ही है; इसलिए उनके द्वारा सर्व संबंधों का, हर प्रकार का पार्ट बजाते हैं। शिवबाबा कहते हैं- यह (रथ) हमारा नहीं है, यह हमने उधार लिया है। (मु.ता. 16.4.71 पृ.1 आदि) ब्रह्मा बाबा के रथ की बात है। बच्चों का सारा अटेन्शन जाता है शिवबाबा तरफ। वह तो कब बीमार पड़ नहीं सकते। वह चाहे तो ब्रह्मा तन से नहीं तो और कोई अच्छे बच्चे द्वारा भी मुरली चला सकते हैं। (मु.ता. 17.1.70 पृ.1 आदि) ब्रह्मा बाबा के शरीर छोड़ने के बाद मुरली चलाने का कार्य बंद नहीं हो सकता है, वो ज़रूर किसी के द्वारा फिर मुरलियाँ चलाते हैं।

बाप/टीचर/सतगुरु

ये तीनों पार्ट एक ही आत्मा के द्वारा चलते हैं जो कि ब्रह्मा बाबा के नहीं है। ये ज़रूरी नहीं है कि शिव की प्रवेशता जिसमें हो वो बाप, टीचर, सतगुरु का पार्टधारी हो; क्योंकि ब्रह्मामुख तो पाँच हैं, सभी ब्रह्मामुखों के लिए ये बात नहीं है। धरणी के अनुसार ही बीज फल देता है। ऐसे ही व्यक्तित्व की योग्यता पर ये भी निर्भर करता है। योग्यता सिर्फ़ एक ऊर्ध्वमुखी ब्रह्मा में ही है, जो सदाशिव ज्योति का आदि-मध्य-अंत में भी मुकर्रर आधार है। जिसके प्रमाण मुरलियों में दिए हैं –

1. देहधारी नम्बरवन है कृष्ण। उनको बाप, टीचर, सतगुरु नहीं कह सकते। (मु.ता.19.12.74 पृ.1 मध्यादि)

2. बाप के तो बच्चे बने हो। टीचर रूप में इनसे शिक्षा पा रहे हो। अंत में (साकार) सतगुरू (दलाल) बन तुमको सच खंड में ले जावेंगे। तीनों काम प्रैक्टिकल में करते हैं। (मु.ता. 17.2.73 पृ.1 आदि)

3. वहाँ (B.k. में भी) बाप मिला नहीं, टीचर मिला नहीं, फट से गुरू बन गए। यहाँ कितने कायदे का ज्ञान है। यहाँ तुम्हारा बाप, शिक्षक, गुरू एक मैं ही हूँ। (मु.ता. 20.4.72 पृ.2 अंत)

4. ऐसा भी कोई नहीं जो कहे कि मैं बाप भी हूँ, टीचर भी हूँ, गुरू भी हूँ। यह ब्रह्मा भी ऐसे नहीं कह सकते। एक शिवबाबा ही कहते हैं- मैं सभी का बाप, टीचर, गुरू हूँ। (मु.ता.19.10.76 पृ.1 मध्यादि)

5. ब्रह्मा से तो कुछ भी मिलने का है नहीं। वर्सा बाप से ही मिलता है इन द्वारा। बाकी ब्रह्मा की कोई वैल्यू नहीं है। (मु.ता.3.2.67 पृ.2 अंत)

6. सद्गुरू तो एक ही है। ब्रह्मा का भी गुरू वह हो गया। (मु.ता
. 4.9.72 पृ.3 अंत)

7. यह मात-पिता, ब्रह्मा-सरस्वती दोनों कल्पवृक्ष के नीचे बैठे हैं, राजयोग सीख रहे हैं। तो ज़रूर उन्हों के गुरू चाहिए। (मु.ता. 28.1.73 पृ.2 मध्यादि)

8. ब्रह्मा को भी पावन बनाने वाला वह एक (दलाल) सतगुरू है। सत बाबा, सत टीचर, सतगुरू तीनों इकट्ठे हैं। (मु.ता. 25.9.73 पृ.2 अंत)



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