ये तीनों पार्ट एक ही आत्मा के द्वारा चलते हैं जो कि ब्रह्मा बाबा के नहीं है। ये ज़रूरी नहीं है कि शिव की प्रवेशता जिसमें हो वो बाप, टीचर, सतगुरु का पार्टधारी हो; क्योंकि ब्रह्मामुख तो पाँच हैं, सभी ब्रह्मामुखों के लिए ये बात नहीं है। धरणी के अनुसार ही बीज फल देता है। ऐसे ही व्यक्तित्व की योग्यता पर ये भी निर्भर करता है। योग्यता सिर्फ़ एक ऊर्ध्वमुखी ब्रह्मा में ही है, जो सदाशिव ज्योति का आदि-मध्य-अंत में भी मुकर्रर आधार है। जिसके प्रमाण मुरलियों में दिए हैं –
1. देहधारी नम्बरवन है कृष्ण। उनको बाप, टीचर, सतगुरु नहीं कह सकते। (मु.ता.19.12.74 पृ.1 मध्यादि)
2. बाप के तो बच्चे बने हो। टीचर रूप में इनसे शिक्षा पा रहे हो। अंत में (साकार) सतगुरू (दलाल) बन तुमको सच खंड में ले जावेंगे। तीनों काम प्रैक्टिकल में करते हैं। (मु.ता. 17.2.73 पृ.1 आदि)
3. वहाँ (B.k. में भी) बाप मिला नहीं, टीचर मिला नहीं, फट से गुरू बन गए। यहाँ कितने कायदे का ज्ञान है। यहाँ तुम्हारा बाप, शिक्षक, गुरू एक मैं ही हूँ। (मु.ता. 20.4.72 पृ.2 अंत)
4. ऐसा भी कोई नहीं जो कहे कि मैं बाप भी हूँ, टीचर भी हूँ, गुरू भी हूँ। यह ब्रह्मा भी ऐसे नहीं कह सकते। एक शिवबाबा ही कहते हैं- मैं सभी का बाप, टीचर, गुरू हूँ। (मु.ता.19.10.76 पृ.1 मध्यादि)
5. ब्रह्मा से तो कुछ भी मिलने का है नहीं। वर्सा बाप से ही मिलता है इन द्वारा। बाकी ब्रह्मा की कोई वैल्यू नहीं है। (मु.ता.3.2.67 पृ.2 अंत)
6. सद्गुरू तो एक ही है। ब्रह्मा का भी गुरू वह हो गया। (मु.ता. 4.9.72 पृ.3 अंत)
7. यह मात-पिता, ब्रह्मा-सरस्वती दोनों कल्पवृक्ष के नीचे बैठे हैं, राजयोग सीख रहे हैं। तो ज़रूर उन्हों के गुरू चाहिए। (मु.ता. 28.1.73 पृ.2 मध्यादि)
8. ब्रह्मा को भी पावन बनाने वाला वह एक (दलाल) सतगुरू है। सत बाबा, सत टीचर, सतगुरू तीनों इकट्ठे हैं। (मु.ता. 25.9.73 पृ.2 अंत)