भगवद्गीता पर रिसर्च:-

होपकिन्स
''(गीता का) अब जो कृष्णप्रधान रूप मिलता है, वह पहले कोई विष्णुप्रधान कविता थी और इससे भी पहले वह कोई एक निस्सम्प्रदाय रचना थी।''



फर्कुहार

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यह (गीता) एक पुरानी पद्य उपनिषद है, जो सम्भवत: श्वेताश्वतरोपनिषद के बाद लिखी गई है
और जिसे किसी कवि ने कृष्णवाद के समर्थन के लिए 0 सन् के बाद वर्तमान रूप में ढाल दिया है।''


गर्वे

''भगवद्गीता पहले एक सांख्य-योग सम्बन्धी ग्रंथ था, जिसमें बाद में कृष्णवासुदेव पूजा पद्धति मिली और 0 पूर्व तीसरी शताब्दी में इसका मेलमिलाप कृष्ण को विष्णु का रूप मानकर वैदिक परम्परा के साथ बिठा दिया गया। मूल रचना ईस्वी पूर्व 200 में लिखी गई थी और इसका वर्तमान रूप ईसा की दूसरी शताब्दी में किसी वेदान्त के अनुयायी द्वारा तैयार किया गया है।''



होल्ट्ज़मैन

गीता को सर्वेश्वरवादी कविता का बाद में विष्णुप्रधान बनाया गया रूप मानता है।




कीथ

कीथ का भी विश्वास है कि  मूलत: गीता श्वेताश्वतर के ढंग की उपनिषद थी; परन्तु बाद में उसे कृष्णा पूजा के अनुकूल ढाल दिया गया।





इन विद्वानों के तर्क संगत है; क्योंकि गीता ज्ञान को सदा ब्रह्म विद्या भगवद्गीता या उपदेशात्मक वचन कहा है, कभी भी श्रीकृष्ण विद्या नहीं कहा है; क्योंकि गीता के किसी भी श्लोक में कृष्ण के द्वारा ज्ञान देने का जिक्र नहीं है भगवद्गीता का अर्थ ही है भगवान का गीत जो डायरेक्ट भगवान के द्वार बोली गई है





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