वह तो गॉड फादर है जिसके अलग-2 नाम-रूप दे दिए हैं; लेकिन अलग-2 नाम-रूप होते हुए भी एक रूप ऐसा है जो हर धर्म में मान्यता प्राप्त करता है। कैसे? अपने भारतवर्ष में ज्योतिर्लिंगम् माने जाते हैं- रामेश्वरम् वगैरह। कहते हैं- राम ने भी उपासना की। राम को भगवान मानते हैं; लेकिन उपासना किसकी की? शिव की उपासना की। तो राम भगवान हुए या शिव भगवान हुए? शिव ही हुए। ऐसे ही गोपेश्वरम् मंदिर भी बना हुआ है। ‘गोप’ कृष्ण को कहा जाता है। इससे साबित हो गया कि कृष्ण भी भगवान नहीं थे। वास्तव में उनका भी कोई ईश्वर है, जिन्होंने उनको ऐसा नर से 16 कला सं. बनाया। ऐसे ही केदारनाथ है, बद्रीनाथ है, काशीविश्वनाथ है और यह सोमनाथ है। इन सभी मंदिरों में इस बात की यादगार है कि यहाँ उस निराकार ज्योति को ज्योतिर्लिंगम् के रूप में माना जाता है। नेपाल में पशुपतिनाथ का मंदिर है। कलियुग के अंत में सभी मनुष्यमात्र पशुओं जैसा आचरण करने वाले हो जाते हैं। उन पशुओं को भी पशु से या राम की सेना बंदरों से मंदिर लायक बनाने वाला वही निराकार शिवबाबा है।
अच्छा, हिन्दुओं की बात छोड़ दीजिए। मुसलमान लोग मक्का में हज़ (तीर्थ यात्रा) करने जाते हैं। वहाँ मुहम्मद ने दीवाल में एक पत्थर लाकर रखा था। उसका नाम उन्होंने ‘संग-ए-असवद्’ दिया। अभी भी जब तक मुसलमान लोग उस पत्थर का चुम्बन नहीं कर लेते, सिजदा नहीं माना जाता, उनकी हज़ की यात्रा पूरी नहीं होती। इसका मतलब वे भी आज तक उस निराकार को मानते हैं, हालाँकि वे पत्थर की मूर्तियों को नहीं मानते। वे तो मूर्तियाँ व शिवलिंगों को तोड़ने वाले रहे हैं। उन्होंने यहाँ भारत में आकर शिवलिंगों को तोड़ा है; लेकिन वहाँ मानते हैं। बौद्धी लोग आज भी चीन-जापान में देखे जाते हैं कि वे गोल स्टूल के ऊपर पत्थर की बटिया रखते हैं और उसके ऊपर दृष्टि एकाग्र करते हैं। इससे साबित होता है कि वे भी उस निराकार को मानते हैं। गुरूनानक ने तो कई जगह कहा है- ‘एक ओंकार निरंकार’, ‘सद्गुरू अकाल मूर्त।’ वे तो निराकार को मानते ही हैं। ईसाईयों के धर्मग्रंथ बाईबल में तो कई जगह लिखा हुआ है- ‘गॉड इज़ लाइट’ अर्थात् परमात्मा ज्योति है। कहने का मतलब यह है कि हर धर्म में उस निराकार ज्योति की मान्यता है। अब यह सवाल पैदा होता है कि जब सब धर्मों में उस एक ही रूप की मान्यता है, तो सब धर्म वाले उस एक ही को परमपिता परमात्मा का रूप क्यों नहीं मानते? ये अलग-2 रूप क्यों माने हुए हैं? यह वास्तविकता किसी की बुद्धि में नहीं आ रही है। ... For more information, to click link below