आध्यात्मिक विश्वविद्यालय एक गैर-सरकारी, धार्मिक, स्वायत्त, शैक्षणिक, आध्यात्मिक, ईश्वरीय परिवार है। इस परिवार के लगभग 60 से 70 प्रतिशत सदस्य महिलाएँ (कन्याएँ और माताएँ) हैं। सभी मनुष्य-गुरुओं ने कन्याओं-माताओं को ठुकराया, उनको नीचे गिराने के निमित्त बने; परंतु जब भगवान प्रजापिता ब्रह्मा के द्वारा इस सृष्टि पर अवतरित होते हैं तो वे कन्याओं-माताओं को शिवशक्ति के रूप में ऊपर उठाते हैं। सभी के मन में प्रश्न उठता है कि आ.वि.वि. में कन्याओं-माताओं की संख्या ज़्यादा क्यों है? इसके सम्बन्ध में ईश्वरीय संविधान अव्यक्त वाणी और मुरलियों के प्रमाणित महावाक्य इस प्रकार हैं -
1. माताओं को किसी ने भी नामी-ग्रामी नहीं बनाया और बाप ने पहले माता का सिलसिला स्थापन किया। ... लोग कहते हैं- 2/4 माताएँ भी एक साथ इकट्ठी नहीं रह सकतीं और अभी माताएँ सारे विश्व में एकता स्थापन करने के निमित्त हैं।....माताओं को सेवा के मैदान पर आना चाहिए। एक-एक माता एक-एक सेवाकेन्द्र सम्भाले। (अव्यक्त वाणी - 11.5.83 पृ.201 आदि)
2. कुमारियों का संगमयुग पर विशेष पार्ट है, ... विशेषता है (विश्व) सेवाधारी बनना। ... अगर अभी यह चांस नहीं लिया तो सारे कल्प (चतुर्युगी) में नहीं मिलेगा। (अव्यक्त वाणी - 2.12.85 पृ.74 अंत)
3. कुमारियों पर बहुत बड़ी जिम्मेवारी है। एक अनेकों के कल्याण प्रति निमित्त बन सकती है। (अव्यक्त वाणी - 29.11.78 पृ.86 आदि)
4. गायन भी है शिव भगवानुवाच 'माताएँ स्वर्ग का द्वार खोलती हैं और शंकराचार्य उवाच नारी नर्क का द्वार खोलती है।' तुम ब्राह्मणियाँ बन सभी को स्वर्ग का द्वार दिखाती हो, समझाती हो। इसलिए वंदेमातरम् गाया जाता है। ... बाप माताओं की महिमा को बढ़ाते हैं। (मुरली तारीख - 10.06.69 पृ.2 अंत)