आध्यात्मिक विश्वविद्यालय एक संस्था नहीं; बल्कि एक आध्यात्मिक परिवार है। आज विश्वभर में किए जाने वाले अनेक प्रयासों के बावजूद भी व्यक्तिगत और दुनियावी स्तर पर दु:ख और अशांति बढ़ ही रही है; क्योंकि मनुष्य आध्यात्मिकता को पूर्णत: भूल चुके हैं । आ.वि.वि. अपने रूहानी सोशल वर्कर्स द्वारा इस दु:ख-दर्द, अशांति को मिटाकर विश्व में शांति और समृद्धि लाने का लक्ष्य रखता है । ये एक ही ऐसा विश्वविद्यालय है, जहाँ हरेक व्यक्ति अपने सच्चे स्वरूप को पहचान सकता है और स्वयं को सशक्त बना सकता है । आप भी अपना मार्ग चुनें और नि:शुल्क आध्यात्मिक शिक्षा का लाभ उठायें ।
डिप्रेशन से राहत
आध्यात्मिकता से लाभ
ध्यान कैसे करें ?
कुछ अनोखे तथ्य जिससे दुनिया अनभिज्ञ है (प्रमाण सहित)
यह दुनिया के लिए बिल्कुल ही नया ज्ञान है, वंडरफुल नॉलेज है। वेद-शास्त्र-ग्रंथ का अध्ययन करने वाले वेद-शास्त्र-ग्रंथ का सीमित ज्ञान ही बता पाएँगे; लेकिन यह तो असीम ज्ञान भण्डार है, कोई किताबी ज्ञान नहीं है जो किताबों में बंधायमान हो। यह ज्ञान ऐसा है जिसमें हरेक की हर बात का समाधान होता है। यह शास्त्रों में बंधा हुआ ज्ञान नहीं है। हम यह वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी समझाते हैं। वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी दुनिया के किसी भी मनुष्य को पता नहीं है। फ्रॉम बिगिनिंग सतयुग से लेकर कलियुग पुराने वर्ल्ड तक की हिस्ट्री-जॉग्राफी। मनुष्यों के पास 2500 साल की हिस्ट्री है; परंतु यह तो वर्ल्ड नहीं है कि बस, मुसलमान कैसे आए, अंग्रेज़ कैसे आए और कितना टाइम पहले आए? वर्ल्ड माना सतयुग कैसे था, कौन राज्य करता था, कैसे राज्य चलता था आदि मुख्य बातों की जानकारी कोई मनुष्यों के पास नहीं है, इन सारी बातों की यथार्थ जानकारी भी परमात्मा ही आकर देते हैं।
मनुष्य अपने जीवन में कई पहेलियाँ हल करते हैं; परंतु इस छोटी- सी पहेली का हल कोई नहीं जानता कि “मैं कौन हूँ?” यों तो हर एक मनुष्य सारा दिन ''मैं- मैं'' कहता ही रहता है; परंतु यदि उससे पूछा जाए कि “मैं” कहने वाला कौन है? तो कोई बताएगा- हम आदमी हैं, कोई बताएगा- हम औरत हैं, कोई बताएगा- हम बच्चा हैं, कोई कहेगा- हम डॉक्टर हैं, कोई कहेगा- मास्टर हैं। सब अपने देह के बारे में बताएँगे, देह का ऑक्युपेशन बताएँगे, देह की उम्र के हिसाब से बताएँगे, स्त्री या पुरुष के हिसाब से बताएँगे। यह कोई नहीं जानता कि हम सदाकाल में क्या हैं। यह बात, इस सृष्टि का जो मालिक है, एक परमपिता परमात्मा ही आ करके बताते हैं। कहते हैं कि तुम सब बिन्दु-2 आत्माएँ हो; इसलिए भारतवर्ष में माथे पर बिन्दी लगाते हैं। तुम देह नहीं हो। बस, इस छोटी-सी पहेली का प्रैक्टिकल हल न जानने के कारण अर्थात् स्वयं को न जानने के कारण, आज सभी मनुष्य देह-अभिमानी हैं और सभी काम, क्रोधादि विकारों के वश हैं तथा दुःखी हैं।