आध्यात्मिक विश्वविद्यालय की शिक्षाएँ

.वि.वि. की शिक्षाओं के चार मुख्य सब्जेक्ट्स हैं: ज्ञान, योग (ध्यान), धारणा और सेवा।
ज्ञान:-

हमारी जानकारी का स्त्रोत ही है ज्ञान-मुरलियाँ और अव्यक्त वाणियाँ, जिनमें निम्नलिखित विषयों का सम्पूर्ण राज़ भरा हुआ है। साप्ताहिक कोर्स के माध्यम से इन विषयों को समझाया जाता है -

i)  मैं कौन हूँ और कहाँ से आया हूँ?

ii)  मेरा पिता कौन है, कहाँ का रहने वाला है और कब-कब वा कैसे-2 इस सृष्टि पर अवतरित होता है?

iii)  परमपिता परमात्मा शिव के  ब्र. वि. शंकर  द्वारा तीन मुख्य कर्तव्य क्या हैं और उन तीन कर्तव्यों का वहन वह वर्तमान समय किनके द्वारा व किस प्रकार से कर रहे हैं?

iv)  इस सृष्टि का वास्तविक इतिहास और भूगोल क्या है? यह सृष्टि एक रंगमंच है, कैसे? हम आत्माएँ पार्टधारी हैं, कैसे? पार्टधारियों के जन्म, सृष्टि के रचयिता और रचना का आदि-मध्य-अंत (भूत, वर्तमान, भविष्य) क्या है?

v)  हमारे जीवन का वास्तविक लक्ष्य क्या है? आने वाली नई दुनिया किस तरह की होगी? नई दुनिया कब और कैसे आएगी और किसके मार्गदर्शन से आएगी? हम अपने-आप को और इस विश्व को पुराने (तमो अर्थात् दु:खी) से नया (सतो अर्थात् सुखी) कैसे बनाते हैं?

vi)  इस मनुष्य-सृष्टि रूपी 'अश्वत्थ वृक्ष' का रहस्य क्या है और इसका साकारी सो निराकारी चैतन्य बीज कौन है? विभिन्न धर्मों की उत्पत्ति का फाउंडेशन कब और कैसे पड़ा? समस्त मनुष्य-सृष्टि के पूर्वज कौन-2 हैं?

vii)  हम आत्माएँ मूल स्वरूप में कैसे पवित्र, दिव्य व सुखदायी थीं, फिर कैसे अपवित्र, अनैतिक, अशांत, दु:खदायी बन गईं, फिर कैसे और कब मूल स्वरूप को फिर से प्राप्त करेंगी? 

योग:-

योग का अर्थ है ‘मेल’ या ‘कनेक्शन’। इसका अर्थ ही है- आत्मा का परमात्मा से प्यार और सम्बन्ध  के तार को जोड़ना। यह मन-बुद्धि की आंतरिक यात्रा है, जिसमें पहले हम स्वयं को जानते हैं, उसके बाद परमपिता परमात्मा से जुड़ते हैं और फिर आत्मा रूपी बैटरी को परमात्म पावर हाउस से चार्ज करने के बाद सारे संसार में शक्तिशाली वायब्रेशन फैलाते हैं। योग की मुख्य विधि है- अपने मन के सात्विक संकल्पों को एक परमपिता परमात्मा में एकाग्र करना जिससे आत्मा में सहज शांति एवं विल पावर बढ़ती है अर्थात् सुखदायी व्यक्तित्व बनता है।

धारणा:-

यह प्रयोगात्मक ज्ञान है; इसलिए हम इस ज्ञान का न केवल श्रवण और लेन-देन करते हैं, बल्कि इसके मूल्यों को अपने जीवन में धारण कर अपने को गुणवान-सुखदायी बनाने का भी लक्ष्य रखते हैं।



सेवा:-

जैसे कि ऊपर भी बताया गया है, आ.वि.वि. के सभी सदस्य रूहानी सोशल वर्कर्स हैं, जो कि आत्माओं को सशक्त व निर्विकारी बनाने के लिए ईश्वरीय ज्ञान का प्रचार-प्रसार समस्त विश्व में करते हैं, जिससे उन्हें सुख और शांति से भरे जीवन की राह दिखा सकें। हम, लोगों की न केवल व्यक्तिगत सेवा करते हैं, बल्कि शांतियुक्त और पावरफुल वायब्रेशन सारे विश्व में प्रसारित भी करते हैं।
आ.वि.वि. के सदस्य स्वयं ही अपने हाथों से विद्यालय के समर्पित सदस्यों के लिए कपड़े सिलाई करते हैं। आ.वि.वि. आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति को मान्यता देता है व आ.वि.वि. के सदस्यों की विभिन्न बीमारियों का उपचार घरेलू आयुर्वेदिक दवाइयों द्वारा किया जाता है, जिन दवाइयों को आ.वि.वि. की समर्पित सदस्याएँ वैद्य/डॉक्टर के निर्देशानुसार स्वयं ही तैयार करते हैं। खेतों में केमिकल्स खाद से उत्पन्न होने वाली गंभीर समस्याओं को नष्ट करने के लिए आ.वि.वि. के सदस्य जैविक खेती को प्राथमिकता देते हुए स्वयं ही अपने तन-मन-धन की शक्ति लगाकर जैविक खेती करते हैं और दुग्ध उत्पादन व गोबर की खाद के उत्पादन के लिए आ.वि.वि. के सदस्य स्वयं ही अपने तन-धन की शक्ति लगाते हुए गौशालाओं का निर्माण एवं संचालन भी करते हैं। आ.वि.वि. के सदस्यों ने सहयोग की शक्ति, आत्मनिर्भरता व स्वावलंबन का उदाहरण दुनिया के सामने प्रस्तुत करते हुए आ.वि.वि. के विजयविहार (दिल्ली), कम्पिल (उ.प्र.) स्थित सेवाकेन्द्रों का निर्माण कार्य स्वयं ही, किसी बाहरी मज़दूरों का सहयोग लिए बगैर, सम्पन्न किया है। 


Copyright © 2023 by AIVV All rights reserved.