1.ज्ञानदाता, सर्व की सद्गति दाता त्रिमूर्ति परमपिता परमात्मा शिव (एक) ही है। (बाकी) ब्र.वि.शं. तीनों का जन्म इकट्ठा है। सिर्फ़ शिवजयंती नहीं है; परंतु त्रिमूर्ति शिवजयंती। (मु.ता.27.9.75 पृ.3 आदि)
2.बाप के अवतरण की तारीख आदि-रत्नों (तीन मूर्तियों) के जन्म की तारीख है। (अ.वा.ता.19.11.79 पृ.26 अंत)
3. शिवबाबा को पधरामणी तो हुई, फिर ब्रह्मा, विष्णु, शंकर की भी साथ में पधरामणी चाहिए। (साकार मु.ता. 26.2.66)
4. पहले-2 तो ये त्रिमूर्ति ही है; क्योंकि अकेला शिव भी नहीं। नहीं, त्रिमूर्ति ज़रूर चाहिए। (साकार मु.ता. 27.10.66)
5. बाप को भी तीन मूर्तियों द्वारा कार्य कराना पड़ता है; इसलिए त्रिमूर्ति का विशेष गायन और पूजन है। त्रिमूर्ति शिव कहते हो। एक बाप के तीन विशेष कार्यकर्ता हैं, जिन द्वारा विश्व का कार्य कराते हैं। (अ.वा.ता. 4.1.80 पृ.173 अंत)