4. पापों का पुंज गरीबी- मनुष्य को अगर अपने पाप कर्मों का दण्ड भोगने के लिए अन्य योनि में जाना पड़ता है तो फिर मनुष्य आज दुःखी क्यों है? सभी मनुष्य सुखी होने चाहिए; परन्तु आज देखा जाए तो मनुष्य गधे की तरह भार वहन कर रहा है, शेर की तरह खूंखार और कीड़े-मकोड़े की तरह एक-दूसरे के लिए दुःखदायी बन गए हैं। अपने पापों का दण्ड मनुष्य योनि में ही अंधे, लंगड़े, कोढ़ी, सड़कों के किनारे रोटी के 1 टुकड़े के लिए जो तरसकर सर्दियों में मर जाते हैं और अमीरों के कुत्ते कारों में घूमते हैं, उनकी देख-रेख पर ध्यान दिया जाता है। आज कुत्तों को मिलता है दूध-भात और बच्चे भूखों चिल्लाते हैं। आज दुनिया में सुख उनके लिए हैं, जिनके पास धन है। वे इसी दुनिया में स्वर्ग समझते हैं। बाकी गरीबों के लिए यह दुनिया नर्क ही नहीं, रौरव नर्क के समान है। अमीर बहुव्यंजन खाते हैं और गरीबों को रोटी का एक टुकड़ा भी नसीब नहीं होता है। ऐसे गाँव भी हैं, जहाँ लोग मिट्टी की रोटी खाकर गुज़ारा करते हैं। गरीबी के लिए तो कवियों ने भी कहा है- ‘ना हि दरिद्र सम्पातक पुंजा।’ अर्थात् जब बहुत पाप करते हैं तो गरीबी नसीब होती है।