मनुष्य-आत्माएँ 84 लाख योनियों में नहीं जाती हैं

इस प्रकृति में अनेक प्रकार की योनियाँ पाई जाती हैं। जिनमें से मनुष्य जीवन सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। जिसके लिए कहा जाता है- बड़े भाग्य से मनुष्य-जीवन मिलता है; क्योंकि शास्त्रों के अनुसार 84 लाख योनियों में भ्रमण करने के बाद ही यह मनुष्य जन्म मिलता है। ऐसे कहा जाता है कि मनुष्य को अपने बुरे कर्मों को भोगने के लिए 84 लाख योनियों का चक्र पूरा करना पड़ता है और फिर मनुष्य योनि प्राप्त कर अच्छे कर्म करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है; परन्तु क्या वास्तव में मोक्ष प्राप्त होता है? क्या अपने किए बुरे कर्मों का परिणाम भुगतने के लिए मनुष्य को अन्य योनियों में जाना आवश्यक है?
आज इन सभी बातों की सत्यता का स्पष्टीकरण कुछ तथ्यों के आधार पर बताते हैं-    
1- वृक्ष और बीज- जैसा बीज बोया जाता है, वैसा ही वृक्ष बनता है। आम का बीज बोने से आम का ही वृक्ष बनता है। आम के बीज से केला नहीं पैदा हो सकता है। एक ही बीज को बार-2 बोने से उसकी शक्ति कम हो सकती है; परन्तु बीज की जाति नहीं बदल सकती है। जैसे गेहूँ से चावल नहीं बन सकता है। तो वैसे ही आत्मा भी एक बीज है जिसे मुस्लिम धर्म में रूह और क्रिश्चियन्स में स्प्रिट कहा जाता है। साइंस जिसे एनर्जी मानती है। जिसके लिए साइंस का सिद्धान्त है- ‘Energy is nither created nor destroy’ अर्थात् आत्मा शाश्वत है। वह न तो रची जाती है और न ही उसका विनाश होता है।

2. मनुष्य के साथ हिसाब-किताब- बौद्धिक प्राणी होने के नाते हम मनुष्यों का हिसाब-किताब मनुष्यों के साथ हो रहा है तो अगला जन्म भी मनुष्यों के साथ ही होना चाहिए।
3. जनसंख्या वृद्धि- अगर 84 लाख योनियों में भ्रमण करना अनिवार्य होता तो मनुष्य की संख्या बहुत कम होनी चाहिए थी; परन्तु जनसंख्या तो लगातार बढ़ती ही जा रही है। दूसरी ओर ऐसी बहुत-सी योनियाँ हैं जो लोप होती जा रही हैं। जब प्रजातियाँ ही लोप हो रही हैं तो फिर 84 लाख योनियों का चक्र कैसे पूरा कह सकते हैं?

4. पापों का पुंज गरीबी- मनुष्य को अगर अपने पाप कर्मों का दण्ड भोगने के लिए अन्य योनि में जाना पड़ता है तो फिर मनुष्य आज दुःखी क्यों है? सभी मनुष्य सुखी होने चाहिए; परन्तु आज देखा जाए तो मनुष्य गधे की तरह भार वहन कर रहा है, शेर की तरह खूंखार और कीड़े-मकोड़े की तरह एक-दूसरे के लिए दुःखदायी बन गए हैं। अपने पापों का दण्ड मनुष्य योनि में ही अंधे, लंगड़े, कोढ़ी, सड़कों के किनारे रोटी के 1 टुकड़े के लिए जो तरसकर सर्दियों में मर जाते हैं और अमीरों के कुत्ते कारों में घूमते हैं, उनकी देख-रेख पर ध्यान दिया जाता है। आज कुत्तों को मिलता है दूध-भात और बच्चे भूखों चिल्लाते हैं। आज दुनिया में सुख उनके लिए हैं, जिनके पास धन है। वे इसी दुनिया में स्वर्ग समझते हैं। बाकी गरीबों के लिए यह दुनिया नर्क ही नहीं, रौरव नर्क के समान है। अमीर बहुव्यंजन खाते हैं और गरीबों को रोटी का एक टुकड़ा भी नसीब नहीं होता है। ऐसे गाँव भी हैं, जहाँ लोग मिट्टी की रोटी खाकर गुज़ारा करते हैं। गरीबी के लिए तो कवियों ने भी कहा है- ‘ना हि दरिद्र सम्पातक पुंजा।’ अर्थात् जब बहुत पाप करते हैं तो गरीबी नसीब होती है।

5. डार्विन थ्योरी- डार्विन थ्योरी के अनुसार यह बताया गया कि मनुष्य पहले बंदर था; परन्तु किसी ने यह विचार नहीं किया कि अगर मनुष्यों के पूर्वज बंदर थे तो बाकी बंदर मनुष्य क्यों नहीं बने? बंदरों की जाति विकसित क्यों होती गई? सभी बंदरों को मनुष्य ही बनते रहना चाहिए। आज डार्विन थ्योरी गलत होने पर भी विज्ञान को मानने वाले कुछ तो संशय में हैं और कुछ इस थ्योरी को सत्य सिद्ध करने में लगे हुए हैं।
6. वैज्ञानिक रिसर्च- पुनर्जन्म पर भारतीय एवं विदेशी वैज्ञानिकों द्वारा की गई सैंकड़ों रिसर्चेज में से एक ने भी वा किसी व्यक्ति ने यह नहीं बताया कि वो पिछले जन्म में कोई जानवर या पशु-पक्षी थे। बल्कि सभी ने मनुष्य योनि का ही ज़िक्र किया है।
7. शास्त्रों में फेरबदल- शास्त्रों में एक जगह 84 लाख योनि का चक्र बताया गया है, वहीं दूसरी ओर शास्त्रों में कुछ ऐसे मिसाल भी हैं जहाँ मनुष्य को मनुष्य योनि में ही पुनर्जन्म लेते रहने वाला बताया है। जैसे महाभारत में- शिखण्डी, जो पूर्वजन्म में अम्बा थी। द्रौपदी पूर्वजन्म में शिव भक्त थी। देवकी-वसुदेव, यशोदा-नन्द आदि ऐसे अनेक शास्त्रों की बातें हैं। शास्त्रों की बातों का अपने में ही कोई ताल-मेल नहीं मिलता है। किसी भी बात का कोई प्रमाण नहीं है; क्योंकि समयानुसार इन शास्त्रों में काफी फेरबदल हुई है। जिसमें सत्य लोप हो गया है; क्योंकि जिसने जैसे शास्त्रों को समझा उस अनुसार उसकी व्याख्या कर दी और भारतवासियों ने उन व्याख्याओं पर अंधविश्वास कर लिया। विचार करने योग्य बात है कि मनुष्य को अपने पूरे 1 जन्म की ही स्मृति नहीं रहती है। फिर 84 लाख योनियों का हिसाब कोई कैसे दे सकता है? साधु-संत, ऋषि-मुनियों ने अपनी-2 मनमत के आधार पर 84 लाख योनियों की व्याख्या कर दी। ताकि कोई हिसाब पूछ न सके। जबकि श्रीमद्भगवद् गीता में एक भी ऐसा श्लोक नहीं है, जिसमें 84 लाख योनियों का ज़िक्र आया हो। जबकि गीता को सर्वशास्त्र शिरोमणि कहा जाता है। गीता की सत्यता को कोई भी मनुष्य नकार नहीं सकता; क्योंकि गीता डायरैक्ट भगवान के द्वारा बोली गई है।
इन सभी तथ्यों से सिद्ध होता है कि मनुष्य-आत्मा मनुष्य योनि में ही जन्म लेती है। इस प्रकार 84 लाख योनियों में जन्म लेने की मान्यता गलत साबित होती है और साथ में पुनर्जन्म की मान्यता सत्य साबित हो जाती है।



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