मनुष्य योनि में दुख क्यों?- कहते हैं- बड़े भाग्य मानुष तन पावा। दुख भोगने के लिए पशु योनि में जाना पड़ता है फिर मनुष्य दुखी क्यों? अतः मनुष्य योनि में जितनी वेदनाएँ, चिन्ताएँ, चेष्टाएँ, आवश्यकताएँ, कामनाएँ, विकल्प, विचार, वासनाएँ, निराशाएँ होती हैं जिससे कि मनुष्य जीवन चिन्तित रहता है, इतना तो शायद ही पशु योनि में होगा। और इसके विपरीत कुत्तों को मिलता दूध-भात, बच्चे भूखे चिल्लाते हैं, यह कैसे! अतः अमीरों के कुत्ते कारों में घूमते हैं और गरीब बच्चे रोटी के टुकड़े के लिए सड़कों पर भीख माँगते फिरते। मनुष्य योनि में ही अपाहिज, अर्द्धांग वाले, लकवे वाले, अंधे,दोनों टाँगों से लंगड़े, कोढ़ी, गूँगे, अतिनिर्धन, पागल और बुद्धि हीन मनुष्य देखे जाते हैं।
अगर मनुष्यात्माएँ पशु-योनियों में जन्म लेतीं तो जनसंख्या में वृद्धि कैसे? आप जानते हैं कि आज मनुष्य-गणना बहुत ही तीव्र गति से बढ़ रही है। अब आप विचार कीजिए कि अगर मनुष्यात्माएँ अपने बुरे कर्मों या संस्कारों के कारण पशु-पक्षी आदि योनियों में जन्म लेती होतीं तब जनसंख्या इस प्रकार न बढ़ती जाती, बल्कि बहुत ही कम होती। समाचार पत्रों में मनुष्य रूप में ही पुर्नजन्म के समाचार भी मिलते हैं।
जैसा बीज होगा वैसा फल- पीपल और बरगद का बीज लगभग एक ही माप या आकार वाला होता है, तब क्यों नहीं पीपल के बीज से बरगद पैदा हो जाता? यह माप या आकार का प्रश्न नहीं, बल्कि बीज अलग है। आम की गुठली से मिर्च पैदा नहीं हो सकती है, ठीक इसी तरह से हरेक योनियाँ भी अलग-2 हैं। मनुष्य पशु योनि या अन्य योनियों में जन्म नहीं लेती हैं।
अर्थात् मनुष्यात्मा पशु से भी बुरी हो सकती है, परन्तु वह पशु योनि या अन्य 84 लाख योनियों में नहीं जाती है। मनुष्यात्मा पशुओं अर्थात् बंदर से भी अधिक विकारी हो सकती है, शेर से भी अधिक हिंसक बन सकती है; परंतु अन्य योनियों में नहीं जाती। मनुष्य विकारों के कारण असुर भी बन सकता है और पवित्र बनकर देवता भी बनता है; परंतु उसका अन्य योनियों में पुनर्जन्म नहीं होता।
अमेरिका में डॉ. स्टेनिसलेव गोराफ ने मेरीलैण्ड स्टेट साइकीक रिसर्च सेंटर में भी इस विषय से संबंधित बहुत कुछ शोध कार्य किया है। पश्चिमी देशों में एल.एस.डी. नाम की मादक दवा खूब ही असर कर रही है। डॉ. गोराफ ने इस दवा के अनेक मरीजों के अनुभव बताए कि किस प्रकार इसके प्रयोग से रोगियों के पूर्वजन्मों के संस्कार आत्मा में जाग्रत हो जाते हैं। वे सदियों पुरानी भाषायें भी बोलने लगते हैं। इन सब रोगियों से भी मनुष्य योनि के सिवाय दूसरी किसी योनि का अनुभव नहीं सुना गया।
इस प्रकार सिद्ध होता है कि 84 लाख योनियों की संभावना तो हो सकती है; परंतु मनुष्य एक कल्प (5000 वर्षीय चतुर्युगी) में अधिक से अधिक 84 जन्म ही धारण करता है। प्राचीन काल में भी ‘चौरासी का चक्र’ ही प्रसिद्ध था, परंतु पापाचार बढ़ने पर बाद में, लोगों को खोटे कर्म करने से भयभीत करने तथा कल्प (चतुर्युगी) की आयु लाखों-करोड़ों वर्ष मानने के कारण मानवीय 84 जन्मों को 84 लाख योनियों में कल्पित कर लिया गया।
परमपिता शिव ही आकर मनुष्य आत्माओं को उनके अनेक जन्मों की कहानी सुनाते हैं। चूँकि वे ही जन्म-मरण के चक्र से न्यारे हैं और त्रिकालदर्शी हैं। वे आकर सबसे पहले इस भ्रम को मिटाते हैं कि मनुष्यात्मा अपने कर्मानुसार मनुष्य के रूप में ही पुनर्जन्म लेती है, न कि पशु-पक्षियों के रूप में। शिव भगवानुवाच है कि “मनुष्यात्मा इस 5000 वर्ष के ड्रामा में या सृष्टि-चक्र में अधिक से अधिक 84 जन्म लेती है, न कि 84 लाख योनियों में भ्रमण करती है।” ...For more information, to click link below