यहाँ यह बताया गया है कि ईश्वर जब सृष्टि पर आएँगे तो ज्ञान का कोई-न-कोई ऐसा नया प्वाइंट ज़रूर बताएँगे जिसमें सारी दुनिया भ्रमित हुई पड़ी हो। ऐसी नई बात ज़रूर सुनाएँगे जिसे सारी दुनिया न जानती हो, बल्कि विपरीत बातें ही जानती हो। वह बात यह है कि जब दुनिया में चारों तरफ भगवान को ढूँढ़ा और कहीं नहीं मिला तो लोगों ने उनके लिए कहना शुरू कर दिया- ‘वे तो सर्वव्यापी हैं। जर्रे-2 में भगवान हैं। कण-2 में भगवान हैं। जहाँ देखो वहाँ भगवान हैं।’ लेकिन वास्तव में गीता का एक श्लोक ही इस बात के लिए काफी है कि ‘‘तद् धाम परमं मम।’’ (कृपया गीता का श्लोक 15/6 का अर्थ देखिए) अर्थात् मैं वहाँ परमधाम का रहने वाला हूँ। दुनिया का सबसे श्रेष्ठ ग्रन्थ गीता है, जिसकी सबसे ज़्यादा टीकाएँ हुई हैं, उसके एक श्लोक में यह बात साबित हो गई है। गीता में ही एक शब्द आया है ‘विभु’। इस शब्द का उन्होंने इतना बड़ा अर्थ कर दिया कि संसार में चारों तरफ यही बात फैली हुई है कि वे सर्वव्यापक हैं। वास्तव में वि+भु का अर्थ यह है कि वे विशेष रूप से हर मनुष्य आत्मा की बुद्धि में, ‘भू’ माना याद के रूप में, अपना स्थान बना लेते हैं। उसका उल्टा अर्थ लगाकर उन्होंने परमपिता सदाशिव ज्योति को सर्वव्यापी कह दिया।
यहाँ बात समझाई गई है कि परमपिता परमात्मा वास्तव में सृष्टि पर सर्वव्यापी नहीं हैं। गीता और रामायण भी इस बात के प्रमाण हैं। गीता व रामायण में लिखा है कि ‘‘जब-जब इस सृष्टि पर अधर्म का बोलबाला होता है तब-तब मैं आता हूँ।’’ ‘आता हूँ’ से साबित ही हो गया कि वे नहीं थे तब तो आए, नहीं तो उनको आने की क्या दरकार थी! दूसरी बात, अभी-2 आपको गीता का जो श्लोक बताया, वह पक्का साबित कर रहा है कि परमपिता परमात्मा का धाम, नाम, काम ऊँचे ते ऊँचा है, जिसका गायन भी है- ‘ऊँचा तेरा धाम, ऊँचा तेरा नाम, ऊँचा तेरा काम’। धाम, काम, नाम- तीनों ही जब ऊँचा है तो वे ऊँचा ही बैठेंगे या नीचे बैठेंगे? इस दुनिया में भी जो राजा होता है वह भी ऊँची गद्दी पर बैठता है, तो हमने राजयोग से राजा बनाने वाले परमपिता परमात्मा को कण-2 में क्यों मिला दिया? यहाँ चित्र में दिखाया गया है कि ऋषि, मुनि, संन्यासी भाव विभोर होते हैं तो खड़ताले बजाकर कहते हैं- ‘हे प्रभु! हमें दर्शन दो’; परंतु जब प्रवचन करते हैं तो कहते हैं- ‘परमात्मा सर्वव्यापी है। आत्मा सो परमात्मा। शिवोऽहम्। हम परमात्मा के रूप हैं, हम ही भगवान हैं।’ तो यह बात तर्कसंगत साबित नहीं होती। एक बात पर पक्का रहना चाहिए। यह क्या बात हुई, कीर्तन करने लगे तो प्रभुजी! हमें दर्शन दो। अब दर्शन कहाँ से दें? तुम्हारे अंदर जब खुद ही भगवान बैठे हुए हैं। तुम खुद ही भगवान के रूप हो। यहाँ यह दिखाया गया है कि जो प्रवचन सुनने वाले हैं वे जिस समय गुरूजी महाराज का प्रवचन सुनते हैं तब तो भाव विभोर होकर कहते हैं- ‘हाँ, परमात्मा सर्वव्यापी है, बहुत अच्छा ज्ञान सुनाया’। घर में पहुँचते ही भाई, भाई की हत्या करने लगे। ... For more information, to click link below