संसार में अनेक प्रकार के योग प्रसिद्ध हैं; जैसे- भक्तियोग, कर्मयोग, ज्ञानयोग, हठयोग, राजयोग आदि। किंतु, योग के इन सभी प्रकारों में सहज राजयोग श्रेष्ठातिश्रेष्ठ है। योग का अर्थ है- सम्बंध या मिलन। आजकल योग का तात्पर्य शरीरिक योगासन, प्राणयाम या हठयोग समझ लिया जाता है; किन्तु योगासन से शारीरिक स्वास्थ्य और कुछ सीमा तक मानसिक स्वास्थ्य मिल सकता है; लेकिन सम्पूर्ण सुख-शांति की प्राप्ति तो केवल सहज राजयोग द्वारा ही हो सकती है।
‘राजयोग’ का अर्थ है राजाओं का राजा बनाने वाला योग या रहस्य भरा योग। मनुष्यात्माएँ कई जन्मों से देह-अभिमान के दलदल में फँसकर, विनाशी देहधारियों से योग लगाती आई हैं; किंतु जैसे ताँबे वाले दो तारों को जोड़ने से उसमें बिजली प्रवाहित होती है; परंतु (देहभान की) रबड़ चढ़े हुए ताँबे के तारों से बिजली का करंट नहीं लगता, उसी प्रकार देह-अभिमानी देहधारियों से सम्बंध रखने पर अविनाशी सुख-शांति की प्राप्ति नहीं हो सकती। परमपिता परमात्मा शिव तो इसे योग भी नहीं, अपितु सरल शब्द में ‘याद’ कहते हैं। याद करना एक हार्दिक स्वाभाविक, सरल एवं निरंतर प्रक्रिया है, जबकि योग से किसी विशेष प्रयास का बोध होता है। जैसे परमपिता+परमात्मा शरीर में रहते हुए भी उसके भान से न्यारे हैं अर्थात् विदेही रहते हैं, उसी प्रकार हमें भी स्वयं को अविनाशी आत्मा (न कि प्रकृति के 5 तत्वों से बना देह) समझकर, प्रजापिता ब्रह्मा के द्वारा परमपिता परमात्मा को याद करना है। हमारी दृष्टि में शिवबाबा रहना चाहिए, मात्र शव अर्थात् देह नहीं। अतः भगवान को न तो सिर्फ साकार रूप में, न तो सिर्फ निराकार रूप में; बल्कि भलीभाँति पहचानकर साकार अर्जुन/आदम शरीर में प्रविष्ट निराकार को याद करना है, यही है सच्चा राजयोग।
मन, वचन एवं कर्म की पवित्रता, परमपिता परमात्मा से सच्चा स्नेह, दिव्य गुणों की धारणा, ईश्वरीय ज्ञान, शुद्ध अन्न तथा सच्चे ब्राह्मणों का संग करने पर आत्मा देह-अभिमान द्वारा उत्पन्न पाँच विकारों अर्थात् काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार से मुक्ति पाकर अपने मूल स्वरूप अर्थात् सर्वगुण सम्पन्न स्वरूप में स्थित हो सकती है। प्रभु को याद करने के लिए अमृतवेला या ब्रह्ममुहूर्त (1am से 5 am) का समय सबसे श्रेष्ठ है; क्योंकि उस समय वातावरण शांत तथा शुद्ध रहता है और मन भी जाग्रत एवं प्रशांत होता है। राजयोग के नित्य अभ्यास से आत्मा में पवित्रता, शांति, धैर्य, निर्भयता, नम्रता-जैसे गुणों की धारणा होती है, साथ ही आत्मा को व्यर्थ विचारों के फैलाव को समेटने की शक्ति, सहनशक्ति, समाने की शक्ति, अच्छे-बुरे को परखने की शक्ति, सही निर्णय लेने की शक्ति, समस्याओं का सामना करने की शक्ति, विभिन्न संस्कार वाले मनुष्यों के साथ सहयोग करने की शक्ति तथा विस्तार को संकीर्ण करने की शक्ति आदि आत्मा की विशेष अष्ट शक्तियाँ प्राप्त होती हैं।
राजयोग के निरंतर एवं दृढ़ अभ्यास से आत्मा अपने आदि, मध्य एवं अंत की कहानी को तथा इस विश्व में अपने अद्वितीय अनेक जन्मों के पार्ट को जान सकती है और अपने घर बैठे विश्व की आत्माओं को भी शांति एवं सुख का दान दे सकती है। इस प्रकार, हम स्व-परिवर्तन के साथ-2 विश्व-परिवर्तन भी कर सकते हैं।