यहाँ दिखाया गया है कि वास्तव में सदाशिव ज्योति अलग से परमपिता हैं और शंकर अलग आत्मा हैं। गलती के कारण दोनों को मिलाकर एक कर दिया; लेकिन गलती भी नहीं है, वास्तव में वह हमारी बेसमझी हो गई। यह बेसमझी होने के कारण ही ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ भी उस बेसमझी में फँसे हुए हैं। क्या बेसमझी हो गई? कि वे सुप्रीम सोल शिव निराकार ज्योतिर्बिंदु जब इस सृष्टि पर आते हैं तो इस सृष्टि पर आकर किसी जनसाधारण को ज़रूर आप समान बनाएँगे व पढ़ाई पढ़ाएँगे। टीचर का कोई तो स्टूडेंट ऐसा निकलेगा जो उनकी पूरी 100 परसेंट पढ़ाई को धारण कर ले। तो वे निराकार ज्योतिर्बिंदु शिव आकर इस शंकर (अर्जुन या आदम) के स्वरूप द्वारा संसार में प्रत्यक्ष होते हैं और इस तरह दोनों का तादात्म्य हो जाता है। आप देखेंगे, कोई यह नहीं कहता है कि शिव-ब्रह्मा एक है। शिव के साथ ब्रह्मा का नाम क्यों नहीं जुड़ा? शिव के साथ विष्णु का नाम क्यों नहीं जुड़ा? शिव के साथ शंकर का ही नाम क्यों जुड़ता है? इसलिए जुड़ता है कि शंकर, शिव की याद में इतना तल्लीन हो जाते हैं कि उनको अपने में समाहित कर लेते हैं अर्थात् बाप समान बन जाते हैं। तो वह समाहित करने की जो स्थिति है वह ‘शिव-शंकर एक है’- यह स्थिति संसार में प्रसिद्ध होती है। वास्तव में दोनों आत्माएँ अलग-2 हैं। ये सुप्रीम सोल शिव जन्म-मरण के चक्र में कभी गर्भ में आते ही नहीं। इसलिए ‘शिवलिंग’ कहा जाता है, ‘शंकर लिंग’ नहीं कहा जाता; ‘शिवरात्रि’ कही जाती है, ‘शंकर रात्रि’ नहीं कही जाती। शिव ऐसी चीज़ है जो कि पाप और पुण्य से हमेशा परे है, और जो देहधारी हैं वे पाप-पुण्य के अंदर फँसते हैं।
अब आप देखिए, शंकर ध्यान में बैठे हैं। अगर ये खुद ही परमपिता सदाशिव ज्योति का रूप होते, सुप्रीम सोल होते तो ये किसका ध्यान कर रहे हैं? आप पुराने-2 मंदिरों में जाइए, आप देखेंगे, बीच में मुख्य स्थान पर शिवलिंग है और आस-पास सभी देवताओं में मुख्य शंकर की भी मूर्ति रखी हुई होती है। इससे क्या साबित हुआ? कि और जितने देवताएँ हैं, उन 33 करोड़ देवताओं के बीच में शंकर देव-देव महादेव तो ज़रूर हैं; लेकिन वे परमपिता परमात्मा नहीं हैं। वे भी उनकी याद में सामने बैठे हुए हैं। किसके सामने? शिवलिंग के सामने। तो निराकार की यादगार लिंग रूप शिव ज्योतिर्बिंदु सुप्रीम सोल है और ये शंकर हीरो पार्टधारी इस सृष्टि-रूपी रंगमंच के महानायक हैं। ज्ञानीजनों द्वारा ज्योतिर्बिंदु शिव को सिर्फ याद किया जा सकता है और भक्तिमार्ग में उनका मुकर्रर शरीर रूपी रथ शंकर ही निराकारी स्टेज में स्थिर हो जाने के कारण बड़े लिंग रूप में पूजा जाता है। ... For more information, to click link below