आजकल योग का तात्पर्य शारीरिक योगासन, प्राणायाम या हठयोग समझ लिया जाता है; किन्तु योगासन से तो शारीरिक स्वास्थ्य और कुछ सीमा तक मानसिक स्वास्थ्य मिल सकता है; लेकिन सम्पूर्ण सुख-शांति की प्राप्ति तो केवल आत्मा का परमात्मा के साथ योग से ही हो सकती है। असली अर्थ में इसे योग भी नहीं, अपितु सरल शब्द में ‘याद’ कहते हैं। राजयोग के द्वारा आत्मिक भावना उत्पन्न होती है जिसके कारण जात-पात, धर्म, भाषा को लेकर जो वितंडावाद है वो सभी दूर होने की सम्भावना रहती है। आत्मिक स्थिति के आधार पर प्राप्त मनोबल से निश्चिन्तता आयेगी और अखण्ड शान्ति मिलेगी, अखंड विश्वास पैदा होगा। जिसके बल पर उनमें परख और सही निर्णय करने की शक्ति और स्थिति-परिस्थितियों और समस्याओं से मुकाबला करने की ताकत आयेगी। और सबसे बड़े-ते-बड़ी प्राप्ति जो और किसी से नहीं मिल सकती,
वो है विनाश की भयंकरता में भी सुरक्षा, प्रलय के समय भी दु:खी नहीं होना, कुरान में भी लिखा है कि “कयामत के समय खुदा के बंदे बड़े मौज में रहेंगे” । राजयोग के नित्य अभ्यास से आत्मा में पवित्रता, शांति, धैर्य, निर्भयता, नम्रता-जैसे गुणों की धारणा होती है, एक शब्द में कहें तो आत्मा समझने से सारे ही दैवी गुण आ जाते हैं। राजयोग द्वारा हर मनुष्य दिव्य गुण और शक्तियों से संपन्न बनने से, समाज में जो भी दुराचार, अनाचार हो रहे हैं, वो स्वतः ही नियंत्रित हो जायेंगे। राजयोग से सबके प्रति आत्मिक दृष्टि व सम दृष्टि उत्पन्न होने के कारण, समाज में जो भी जाति, वर्ण, कुल व ऊँच-नीच की भावनायें मौजूद हैं, वो सभी मिट जायेंगी। साथ ही धर्म को लेकर होने वाले अनेक लड़ाई-झगड़ों से भी मुक्त वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना से ओत-प्रोत नवीन समाज का निर्माण होगा।