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त्रिमूर्ति
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लक्ष्मी-नारायण
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कल्पवृक्ष
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सीढ़ी
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श्रीमद्भगवद्गीता

विश्व का सर्वोत्तम प्राचीन ग्रंथ ‘श्रीमद्भगवद्गीता’ जीवनदर्शन का आधार मानी जाती रही है। जो वर्तमान में ‘भारतीय धर्मग्रंथ’ के रूप में सम्मानित होने के लिए भी अग्रसर है; परन्तु क्या इस विशिष्ट धर्मग्रंथ की परस्पर विरोधात्मक अनेक टीकाएँ जनमानस का उचित मार्गदर्शन कर सकेंगी/करने में समर्थ हो सकेंगी? वास्तव में वर्तमान में मुख्य आवश्यकता है इसके मूल भावदर्शन की। ‘श्रीमद्भगवत गीता’ का यह संस्करण अपने मूलरूप में ही है। स्वयं गीतापति भगवान का यह प्रस्तुतीकरण जहाँ संस्कृत शब्दों के मूल अर्थों पर आधारित है तो वहीं हम सभी के जीवन शैली को वास्तविक अर्थ देने में भी सक्षम है और भविष्य में गीता ही सम्पूर्ण सेवा का आधार बनेगी। गीता में आए हुए ढेर श्लोकों से ही यह साबित होता है कि गीता का भगवान निराकार है, अभोक्ता है, अजन्मा है, न कि कोई कलाओं में बंधायमान साकारी मनुष्य या देवता।


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