गीता का भगवान कौन है ?

जो बात अनेकों तथ्य और गीता के श्लोकों से प्रमाणित होती है।



   तथ्य द्वारा प्रमाणित -
1कृष्ण भगवान है ही नहीं। वो तो देवता है। भगवान तो कलातीत होता है, जबकि कृष्ण तो 16 कला सम्पूर्ण है।
2- गीता में तो लिखा है- “भगवानुवाच” अर्थात् भगवान के द्वारा बोला गया। यदि कृष्ण ने गीता-ज्ञान दिया होता तो कृष्ण-उवाच लिखा होता; परन्तु कृष्ण-उवाच तो कहीं लिखा ही नहीं।
3- गीता-ज्ञान को सदा ब्रह्म विद्या भगवद्गीता या उपदेशात्मक वचन कहा है, कभी भी श्रीकृष्ण विद्या नहीं कहा है; क्योंकि गीता के किसी भी श्लोक में कृष्ण के द्वारा ज्ञान देने का जिक्र नहीं है।
4- भगवद्गीता का अर्थ ही है- भगवान की गीता। जो डायरैक्ट भगवान के द्वार बोली गई है; इसलिए गीता में ही सिर्फ ‘भगवानुवाच’ शब्द है, कहीं पर भी ‘कृष्ण-उवाच’ नहीं कहा गया। गीता में अगर कहीं ‘कृष्ण’ शब्द आया भी है तो वो कोई श्रीकृष्ण देवता के लिए नहीं, बल्कि भगवान को संबोधित किया है। जिस प्रकार भगवान को मधुसूदन, ऋषिकेश आदि नामों से संबोधित किया है, वैसे कृष्ण भी कहा है; क्योंकि ‘कृष्ण’ शब्द का अर्थ है- आकर्षण करना; जैसे गीता-ज्ञान ने सभी धर्म वालों को आकर्षित किया है। ऐसे ही सिर्फ भगवान ही तो हैं जो सबको अपनी ओर आकर्षित करते हैं। कृष्ण से तो सभी धर्म वाले आकर्षित नहीं हैं।
5- ‘भगवान’ शब्द का अनुवाद परम व्यक्तित्व सुप्रीम पर्सनैलिटी के रूप में करते हैं, जो कि परमेश्वर है। जिसके ऊपर और कोई नहीं है।
उपनिषदो में भी कहा है-
यो देवानां प्रभवश्चोद्भवश्च विश्वाधिपो रूद्रो महर्षिः। हिरण्यगर्भं जनयामास पूर्वं स नो बुद्धया शुभया संयुनक्तु।।
वे सर्वज्ञ, रुद्र, सभी देवों के रचयिता और उनकी शक्तियों के प्रदाता, विश्व के आधार, वे जिन्होंने आदि में हिरण्यगर्भ को जन्म दिया, कृपया हमें निर्मल बुद्धि प्रदान करें।
श्रीकृष्ण को कभी भी रुद्र नहीं कहते हैं। रुद्र सिर्फ महादेव को कहा जाता है।
6-  श्वेताश्वतरोपनिषद् - सः कारणं करणाधिपाधिपः। अस्य जनिता न कश्चित् अधिपः च न।।
वह स्वयं ही उत्पत्ति का कारण तथा प्रकृतिगत साधनों के अधिपतियों का अधिपति है; किन्तु न कोई उसका जनक उत्पत्तिकर्ता है, न ही कोई उसका अधिपति स्वामी है।
श्रीकृष्ण के जनक अर्थात् मात-पिता दिखाते हैं; परंतु महादेव के मात-पिता नहीं दिखाते हैं, बल्कि सारा संसार अर्धनारीश्वर अर्थात् मात-पिता के रूप में मानते हैं और पूजते हैं।
7-  अथर्वशिर उपनिषद्
यो वै रूद्रः स भगवान् यः च तेजः तस्मै वै नमोनमः।
वह जो रुद्र है, वह भगवान है। वह परम प्रकाश है और हम उसे बारंबार नमन करते हैं।
यजुर्वेद में कहा है- ओम् नमो भगवते रूद्राय। जिसका अर्थ है रुद्र जो कि भगवान ईश्वर की परम मूर्ति है, उनको नमन।
वेदों और उपनिषद् में ‘भगवान’ शब्द सिर्फ शिव-शंकर महादेव के अलावा अन्य किसी देवताओं के लिए प्रयोग नहीं किया गया है। जैसे-2 ग्रंथों की व्याख्या होती गई, अनेक देवताओं के लिए ‘भगवान’ शब्द प्रयोग करने लगे और अभी तो मनुष्यों को भी ‘भगवान’ शब्द की उपाधि दे देते हैं।
8-  नॉलेज से नॉलेज देने वाला बड़ा होता है। कहते हैं- स्वदेशे पूज्यते राजा, विद्वान् सर्वत्र पूज्यते।’’ अर्थात्, राजा सिर्फ अपने देश में पूजा जाता है; लेकिन विद्वान तो सारे संसार में पूजनीय होते हैं। फिर श्रीकृष्ण को क्यों सभी धर्म वालों ने स्वीकार नहीं किया, जबकि गीता-ज्ञान को तो सबने सर्वोत्तम माना है।
9-  कहते हैं अधर्म पर जीत पाने के लिए कृष्ण ने धर्मयुद्ध किया, अधर्मियों का नाश करने के लिए विष्णु ने कई बार अवतार लिए; परंतु 2500 वर्ष से लगातार हो रहे विधर्मी आक्रांता-अधर्मियों से मुकाबला करने पर सनातन धर्मी, चाहे मराठा हो या राजपूत या आम भारतवासी, सबने ‘‘हर-2 महादेव’’ या ‘‘एकलिंगजी’’ अर्थात् शिव-शंकर भोलेनाथ के नाम का ही उद्घोष किया है। हर अधर्म पर जीत पाने के लिए भारतवासी सदा महादेव को याद करते हैं। किसी ने भी कृष्ण या विष्णु पूजा या उनके नाम का उद्घोष कभी युद्ध से पहले नहीं किया, फिर अधर्म का नाश करने का श्रेय श्रीकृष्ण को कैसे दे सकते हैं?
10-  कथनी-करनी एक होनी चाहिए; लेकिन श्री कृष्ण की कथनी-करनी दोनों ही अलग दिखती है। गर्भ से जन्म लेने वाले कृष्ण स्वयं को अजन्मा कहते हैं। भगवद्गीता में सदैव अनासक्त होने का ज्ञान दिया है, जबकि कृष्ण का चरित्र तो सदा आसक्ति वाला दिखाते हैं।
11-  गीता में काम को महाशत्रु बताया है, ना कि दुर्योधन, दुःशासन को। सिर्फ एक महादेव का ही गायन है काम को भस्म करने का। कामदेव कोई मनुष्य की बात नहीं, बल्कि मन की कामनाओं की बात है, जो भस्म कर सकता है वो ही उसको मारने का ज्ञान दे सकता है।
12-  गीता में सिर्फ भगवान से प्रेम करने और अनासक्त होकर संसारी कर्म करने का ज्ञान है, जबकि कृष्ण चरित्र संसार में राग और प्रेम को उत्पन्न करता है। इस चरित्र का ही अनुसरण करने के कारण राजाएँ भी अनेक रानियाँ रखने लगे। अगर गीता-ज्ञान अनुसार महादेव के चरित्र का अनुसरण करते तो संसार में आज एक नारी सदा ब्रह्मचारी शिव-पार्वती की तरह सुखदाई पवित्र प्रवृत्तिमार्ग होता।
13-  गीता में आए भगवान के स्वरूपों के नाम पर श्रीकृष्ण के तो एक भी मंदिर नहीं मिलते हैं; लेकिन महादेव के मंदिर ज़रूर मिल जाते हैं। यदि गीता ज्ञानदाता श्री कृष्ण है तो मंदिर महादेव के कैसे बन गए? .............. Click to view temple name

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