For Bk students (Brahmakumar & kumaris)

परमपिता शिव के मुकर्रर रथ को पहचानें मुरली और अव्यक्त वाणियों के प्रूफ के साथ

इस रुद्र ज्ञान यज्ञ की स्थापना कब हुई ? कैसे हुई ? निमित्त कौन बने? परिवार कैसे बना फिर विघटन कैसे हो गया ? किस प्रकार संचालन हुआ स्थापना से लेकर अंत तक की सभी बातों के सत्यार्थ को जानें मुरली और अव्यक्त वाणियों के महावाक्य के साथ

वास्तविक यज्ञ स्थापक कौन ?

दादा लेखराज को साक्षात्कार हुए इस कारण राजस्व अश्वमेध अविनाशी रुद्र गीता-ज्ञान-यज्ञ की स्थापना सन् 1936/37 में सिंध-हैदराबाद में हुई, ऐसा माना जाता है; परन्तु देखा जाए तो ज्ञान-बीज का फाउण्डेशन सन् 1936/37 में बंगाल कलकत्ते में पड़ा। जब दादा लेखराज कृपलानी के साक्षात्कारों का अर्थ बताने के लिए सदाशिव ज्योति ने भागीदार (मुकर्रर रथ) में प्रवेश किया।
शिवबाप के मुकर्रर रथ की पहचान 

 

ये अभी हीरे समान पुरुषोत्तम संगमयुग चल रहा है। 5000 वर्ष के ड्रामा का यही सबसे विशेष संधिकाल है जो पुराने कल्प के अंत का समय है और नए कल्प का आदि भी है। और युगों के संधिकाल को विशेष नहीं बताया गया है, वो सामान्य संगम हैं और ये विशेष हीरेतुल्य संगमयुग है; क्योंकि इस समय ही सदाशिव ज्योति जो सदा परमधाम निवासी है, वो इस सृष्टि पर आता है और किसी साकार तन का आधार लेकर ही नए कल्प का आवर्तन करता है।

 

ब्रह्मा और प्रजापिता ब्रह्मा में अंतर

1.मुझे ब्रह्मा ज़रूर चाहिए, तो प्रजापिता ब्रह्मा भी चाहिए।... यह मेरा रथ मुकर्रर है। (मु.ता.15.11.87 पृ.3 आदि)

2.  कृष्ण को कब प्रजापिता ब्रह्मा नहीं कहा जाता। नाम गाया हुआ है ना प्रजापिता ब्रह्मा। जो होकर गए हैं, वह इस समय प्रेजेण्ट हैं। (मु.ता. 11.3.73 पृ.1 आदि)

3. व्यक्त प्रजापिता ब्रह्मा चाहिए। सूक्ष्मवतन में तो प्रजापिता नहीं होता है। प्रजापिता ब्रह्मा यहाँ चाहिए। (मु.ता. 5.8.73 पृ.2 मध्यांत)

4. व्यक्त प्रजापिता ब्रह्मा चाहिए। सूक्ष्मवतन में तो प्रजापिता नहीं होता है। प्रजापिता ब्रह्मा यहाँ चाहिए। (मु.ता. 5.8.73 पृ.2 मध्यांत)
बाप, टीचर, सद्गुरु

1. देहधारी नम्बरवन है कृष्ण। उनको बाप, टीचर, सतगुरु नहीं कह सकते। (मु.ता.19.12.74 पृ.1 मध्यादि)

2. बाप के तो बच्चे बने हो। टीचर रूप में इनसे शिक्षा पा रहे हो। अंत में (साकार) सतगुरू (दलाल) बन तुमको सच खंड में ले जावेंगे। तीनों काम प्रैक्टिकल में करते हैं। (मु.ता. 17.2.73 पृ.1 आदि)

3. ऐसा भी कोई नहीं जो कहे कि मैं बाप भी हूँ, टीचर भी हूँ, गुरू भी हूँ। यह ब्रह्मा भी ऐसे नहीं कह सकते। एक शिवबाबा ही कहते हैं- मैं सभी का बाप, टीचर, गुरू हूँ। (मु.ता.19.10.76 पृ.1 मध्यादि)

4. ब्रह्मा को भी पावन बनाने वाला वह एक (दलाल) सतगुरू है। सत बाबा, सत टीचर, सतगुरू तीनों इकट्ठे हैं। (मु.ता. 25.9.73 पृ.2 अंत)
राम बाप का यज्ञ में पुन: आगमन
राम वाली आत्मा पुनः ज्ञान यज्ञ में अहमदाबाद के पालड़ी सेण्टर में ही आती है। उसका साकार तन अहमदाबाद में अलौकिक जन्म लेता है। अतः अव्यक्त बापदादा ने अहमदाबाद को ‘अल्लाह की नगरी’ कहा है। खुदा की इस बेहद खुदी के कारण ही इस नगरी का नाम अहं+दा+बाद अर्थात् जिसने सबको झुकाने के बाद अपना (सात्विक) अहं दिया हो- ऐसा अहमदाबाद नाम पड़ा है। जिस अहमदाबाद प्रभुपार्क, पालड़ी सेवाकेन्द्र के अलावा सभी सेण्टर्स बच्चों ने बनाए; परन्तु यज्ञ की धनराशि से ब्रह्मा बाबा द्वारा सिर्फ़ अहमदाबाद पालड़ी सेवाकेन्द्र बनता है।


आध्यात्मिक अध्ययन के लिए


ब्रह्माकुमारी बताएं नहीं तो हम बताएं (सेवा में *एडवान्स पार्टी)

परमात्मा सर्वव्यापी नहीं, तो एकव्यापी कहाँ है ?


परमात्मा सर्वव्यापी नहीं है, सिर्फ एक शंकर महादेव में ही व्यापी है।

शिव-शंकर अलग-2 हैं, तो एक कैसे हो गए ? कारण बताएँ।


निराकार शिव ज्योति बिंदु ने मूर्तिमान शंकर महादेव में प्रवेश किया तो शिव-शंकर एक हो गए।

आत्मा सो परमात्मा नहीं है, तो आत्मा सो परमात्मा का गायन किसका है ?


एक ही देव-आत्मा शंकर महादेव का गायन है- आत्मा सो परमात्मा, जो सृष्टि का हीरो पार्टधारी आत्मा है।

गीता का साकार भगवान कृष्ण नहीं है, तो शिव साकार भगवान कैसे है ?



गीता का साकार भगवान कृष्ण उर्फ ब्रह्मा नहीं है। निराकार शिवज्योति बिंदु शंकर महादेव में प्रवेश करके गीता का साकार भगवान बनते हैं। (प्रमाणित गीता श्लोकः 10-3, 11-32 इत्यादि)

पतित-पावनी गंगा नहीं है, तो शंकर के ऊपर विराजमान क्यों है ?



शिव-शंकर से साकार सम्बन्ध जोड़ने के बाद ही गंगा शंकर के सर पर विराजमान होती है। (“...अगर सागर से सम्बन्ध नहीं तो नदी भी नाला बन जाती।” अव्यक्त वाणी: 16.1.79 पृ.4 आदि)

अनेक मठ-पंथों द्वारा गीता की 108 से भी अधिक टीकाएँ हो चुकी हैं, तो बी.के. ज्ञान के अनुसार गीता की व्याख्या क्यों नहीं हो सकती ?



जैसे अनेक मठ-पंथों द्वारा गीता की 108 से अधिक टीकाएँ हो चुकी हैं, वैसे ही ब्रह्मा बाबा की मुरलियों के अनुसार गीता की सटीक व्याख्या हो चुकी है।

शास्त्र अगर झूठे हैं, तो ब्रह्मा बाबा ने शास्त्रकारों की यह कहावत बार-2 क्यों दोहराई कि ब्रह्मा भी उतर आए तो भी हम शास्त्रों को नहीं छोड़ेंगे ?



अगर वेद-शास्त्रों की सार की बातों को साक्षात् ब्रह्मा के महावाक्यों से टैली कर लिया जाएगा तो शास्त्रकार भी अपना हठ छोड़ देंगे।

शंकर और विष्णु अगर साकार में नहीं होते, तो उनकी इतनी याद, मंदिर और मूर्तियाँ कहाँ से आ गईं ? त्रिमूर्ति शिव की पहली मूर्ति - ब्रह्मा की पूजा, मंदिर और मूर्तियाँ क्यों नहीं बनतीं ?



साक्षात् शंकर और विष्णु के फॉलोअर्स ने उन्हें पहचानकर अपने प्रैक्टिकल जीवन से उनकी कोई निन्दा नहीं कराई; इसीलिए उनकी इतनी याद, मंदिर और मूर्तियाँ कायम हैं, जबकि ब्रह्मा की याद, मन्दिर और मूर्तियाँ नहीं होतीं।

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