प्रत्येक व्यक्ति के लिए गीता-ज्ञान का अध्ययन अति आवश्यक है। गंगा के पानी से तो सिर्फ शरीर ही साफ हो सकता है; परंतु गीता-ज्ञान से तो मैला मन भी साफ हो जाता है। गीता में बताया है- क्या कर्म करना चाहिए और क्या नहीं, क्या त्यागने योग्य है और क्या ग्रहण करने योग्य है। जिसमें आज बड़े-2 पंडित-विद्वान-आचार्य, वैज्ञानिक भी चक्करा गए हैं। ये ज्ञान सिर्फ सुनने वाला नहीं, अपितु धारण करने वाला है। यदि बच्चों को गीता-ज्ञान दिया जाए तो उनमें अच्छे संस्कार उत्पन्न होंगे। इसका अध्ययन करने से हमें पता चलेगा कि हमारा सम्पूर्ण जीवन कैसा होना चाहिए। जो वेद निकले या जो भी शास्त्र निकले, उपनिषद् निकले, पुराण निकले, वो सब त्रिगुणमयी हैं; इसलिए गीता (2/45) में लिखा है क्या? ‘‘त्रैगुण्यविषया वेदा’’, जो वेद हैं त्रिगुणातीत नहीं हैं, तीन गुणों से भरे-पूरे हैं। ‘‘निस्त्रैगुण्यो भवार्जुन।’’ हे अर्जुन! तेरे को तीन गुणों से परे जाना है, परम्ब्रह्म की स्टेज में पहुँचना है। परम्ब्रह्म माने ब्रह्मलोक की स्टेज, सत्यधाम की स्टेज शरीर से भी और आत्मा से भी।