गुरु माना भारी अर्थात् वजनी। सद्गुरू सभी से भारी है; क्योंकि मनुष्यमात्र की सद्गति करने वाला है, सबको साथ ले जाने वाला है, मुक्ति-जीवन्मुक्ति में ले जाने वाला है, सदा साथ निभाने वाला सद्गुरू एक को भी बीच में छोड़कर भागने वाला नहीं है। ‘मेरा बाबा’ दोनों इकट्ठे हैं। मुरली (ता.9.3.89 पृ.1 मध्य) में कहा है- ‘‘साकार और निराकार के मेल को ‘बाबा’ कहा जाता है।’’ एक हैं सभी आत्माओं के बाप निराकार शिवज्योति, जिनका अपना कोई देह नहीं है। और दूसरे हैं मनुष्य-सृष्टि के पिता- प्रजापिता, जिनका 5 तत्वों का बना हुआ देह है। वो देहधारी हैं; क्योंकि मन-बुद्धि से देह को धारण करने वाले मनुष्य हैं। लेकिन निराकारी-निर्विकारी-निरहंकारी शिव ज्योतिबिंदु के संग के रंग में ऐसे रंग जाते हैं कि अपनी देह को, देह के पदार्थों को, देह के सम्बन्धियों को, देह की सारी दुनिया को ही भूल जाते हैं; इसलिए भक्तिमार्ग में शंकर को ही अर्धोन्मिलित चढ़ी हुई निराकारी स्टेज वाली आँखें और भस्म रमाते हुए दिखाया जाता है। गीता में श्लोक (5/19) भी आया है- “इहैव तैर्जितः सर्गो येषां साम्ये स्थितं मनः। निर्दोषं हि समं ब्रह्म तस्माद्ब्रह्मणि ते स्थिताः।। अर्थात् जिनका मन एक शिव बाप की संतान आत्मा-2 भाई-2 की समानता में स्थिर है, उन्होंने इस संसार में ही जन्म-मृत्यु रूपी संसार को जीत लिया है। क्योंकि ब्रह्मतत्व दोष-पापरहित और समान है; इसलिए वे ब्रह्मतत्व में ही स्थिर हैं। मुरली (ता. 7.3.67 पृ.2 अंत) में भी कहा है- “थोड़े ही दिन इस दुनिया में हो, फिर तुम बच्चों को ये स्थूल वतन भासेगा ही नहीं, मूलवतन और सूक्ष्मवतन ही भासेगा।”